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| pushpa 2 |
सबसे पहली बात जो ‘पुष्पा 2’ के बारे में जाननी जरूरी है, वह ये कि ये कोई महान फिल्म नहीं है। ये एक आम मुंबइया मसाला फिल्म जैसी एक्शन फिल्म है। और, चूंकि एक हिट फिल्म की सीक्वल है लिहाजा इसकी अपनी ब्रांड वैल्यू दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींच लाने में सफल है। किसी सुपरहिट फिल्म का सीक्वल बनाना आसान नहीं होता। खासतौर से तब जब कहने को कोई खास कहानी न बची हो। तेलुगु सिनेमा के दिग्गज निर्देशक सुकुमार और निर्माता अल्लू अरविंद के बेटे अल्लू अर्जुन की फिल्म ‘पुष्पा 2’ की मेकिंग आसान नहीं रही है। इस फिल्म का मामला मलयालम फिल्म अभिनेता फहद फासिल की तारीखों के चलते बार-बार लटका। फिल्म ‘पुष्पा 3 द रैम्पेज’ के एलान के साथ खत्म होती है और इस एलान से पहले ही निर्देशक सुकुमार ने फिल्म की सारी कमजोर कड़ियां किनारे लगा दी हैं।
श्रेयस तलपदे की आवाज का कमाल
पुष्पराज ने पिछली फिल्म ‘पुष्पा द राइज’ में नारा लगाया था ‘मैं झुकेगा नहीं’, अबकी उसका एलान है, ‘मैं हरगिज नहीं झुकेगा’। बीवी उसकी मां बनने वाली है। काली मां से वह एक बेटी चाहता है ताकि वह अपने ससुराल जाए तो उसे वहां का कुलनाम मिल सके। बचपन से लेकर पुष्पा इसी कुलनाम को लेकर ही तो बार बार दुखी होता रहा है। पुष्पा की आवाज इस बार थोड़ी कड़क है। अभिनेता श्रेयस तलपदे ने फिर एक बार पुष्प राज के किरदार को परदे पर खिला दिया है। फ्लावर से वाइल्ड फायर बनने की कोशिश करते पुष्प राज की कहानी यहां थोड़ा पीछे से शुरू होती है। छलांग लगाने के लिए वह पंजे भी सिकोड़ता नजर आता है लेकिन बचपन का कोमल पुष्पा बड़ा होकर गंधर्व पुष्प राज कैसे बन गया, इसकी कहानी जबर्दस्त है। श्रीमती पुष्प राज यानी कि श्रीवल्ली का नैन मटक्का यहां भी जारी है। अपने सामी पर वह फिदा है। पूजा पाठ में भी नंबर वन है, बस खाना हर बार ‘नॉन वेज’ ही बनाती है। श्रीवल्ली को सुकुमार ने घरेलू बीवी बनाया है और फिल्म में समंथा रुथ प्रभु की कमी पूरी करने के लिए इस बार श्रीलीला को आइटम गर्ल बनाया है। समांथा जैसा न तो नमक उनमें हैं और न ही उन जैसी चपलता। मामला किसिक में कसक भरकर लाल चंदन हो गया। फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी ये गाना ही है।
सीक्वल में फुस्स हो गया फाफा
कहानी के रिवर्स स्विंग ने कर दिया खेल
श्रीवल्ली के आगे फीकी रही श्रीलीला
फिल्म की तकनीकी टीम में संगीतकार देवी श्री प्रसाद ओवर कॉन्फिडेंस का शिकार साफ नजर आते हैं। उनकी हिंदी पर कमजोर पकड़ भी इस बार उजागर हो गई है। फिल्म बनाने वालों को भी डीएसपी की ये कमजोरी रिलीज से पहले ही समझ आ गई। इसीलिए फिल्म के बैकग्राउंड स्कोर में एस थमन और सैम सी एस की भी मदद ली गई है। फिल्म की तकनीकी टीम में जिस एक शख्स की तारीफ करने का मन बार बार होता है वह पोलैंड के मूल निवासी सिनेमैटोग्राफर कुबा ब्रोजेक मिरोस्लॉव। फिल्म का प्रोडक्शन डिजाइन काफी रंगीन है। प्रीतशील सिंह ने अल्लू अर्जुन के गेटअप पर काबिले तारीफ काम किया है। नवीन नूली का संपादन बेहतर होता तो फिल्म कम से कम 20 मिनट कम हो सकती है। साउथ सिनेमा में इस साल ‘हनुमान’ ने जिस होशियारी से सिनेमा को साधा, उसे नाग अश्विन ‘कल्कि 2898’ में आगे बढ़ाया और, अब आ गया है पुष्पराज। अपने इलाके और बॉक्स ऑफिस पर ‘रूल’ करने के लिए।
